उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी
शहर के मक्तलों1 से उभरना है अभी
साँस रोके बैठी है हरेक रहगुज़र
उदास आँखों से बहता एक खामोश डर
संभल के चलना है, नहीं डरना है अभी
उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी
ये तेरे रहनुमा, ये नुमाईंदे तेरे
कफ़न भेजेंगे खोखले लफ़्ज़ों के
इन्हीं ज़ख्मों को मलहम में बदलना है अभी
उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी
इस से पहले के फिर से आदत हो जाये
फिर तू अख़बारों के पन्नों में खो जाये
'बस बहुत हुआ' का एलान करना है अभी
उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी
खून सड़कों पर नहीं, रगों में बहे
ख़्वाब बिखरे नहीं, आँखों में रहें
गर बदलती नहीं दुनिया, तो बदलना है अभी
उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी
(1 मक़तल: place of sacrifice, killing fields)
5 comments:
Awesome writing Adi!
Beautiful piece of writing Adi.
Truly inspiring!
Beautiful!
May people read it and get inspired to fight for a future.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है ...सच में सही कहा ..."उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी" ...अब ये लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी ...
last stanza is really well-written
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