खबर आई है के बड़ी अम्मा मर गयी! अम्मा, यानि दादी, बड़ी अम्मा यानि दादी की भी माँ. पूरे 105 बरस की थी बड़ी अम्मा. स्वाति कहती है, "50 हज़ार रूपए, एक जोड़ी कानों की बाली और एक भैंस छोड़ गयी है मेरे लिए! मुझे नहीं पता के मैं रोऊँ या खुश होऊं!"
105 बरस! एक पूरी सदी गुज़र गयी आज. और कुछ नहीं, लोग सुबह उठेंगे और काम पर चल देंगे अपने-अपने. सभी बढ़ जो रहे हैं अपने बरस पूरे होने की तरफ.
बड़ी अम्मा मर गयी. मेरी दोस्त स्वाति की, मेरी नहीं. फिर मैं क्यूँ लिख रहा हूँ ये सब?
जैसे बच्चे पूरे समाज की ज़िम्मेदारी होते हैं, वैसे ही बड़े-बूढ़े भी तो इसी समाज के साझा अनुभव का पिटारा होते हैं, वो सबके होते हैं न? पता नहीं कितने किस्से, कितनी कहानियां, जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव बड़ी अम्मा के साथ ही चले गए!
न जाने क्यूँ, पर स्वाति का मेसेज आया तो लगा जैसे मेरी ही दादी गुज़री है. दादी चाहे दोस्त की हो, होती तो अपनी ही है न?
3 comments:
Waah Adeejee! Very Premchand Mushi feel in this post! :D
main nahi jaanti daadi kaisi hoti hai, kyunki maine kabhi unhe dekha nahi, par chaahti hoon, kaash woh zinda hoti, jo mujhe kahaniyan sunati, mere bachpan mein, meri daadi, sab kehte hain main unke jaisi dikhti hoon, main nahi jaanti, kyunki main unhe kabhi dekha nahi, sirf tasviron mein hi dekha hai
Touching and Riveting!
I guess I'll scan through whole of your blog now.
Am blessed!
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