चमकती तीरगी की बेरहमी
जब हद से बढ़ जाती है
चीखती खामोशियों की गर्मी
जब झुलसा देती है तहज़ीब के पनपते बीज
और कुछ कहने और सुनने को
बचता नहीं ख्याल की बंजर ज़मीन पर
...
तेरी रहमत का भेजा एक मासूम सा कतरा
जन्म लेता है इस वीरान कागज़ पर
और नज़्म कहलाता है
6 comments:
Beautiful!!! this is classic Adee that we love so much! Pls make sure this one is a part of the book..
"चीखती खामोशियों की गर्मी जब झुलसा देती है तहज़ीब के पनपते बीज" beautiful lines so apt ...
keep penning down you have a unique way of expressing your thoughts ...
Shruti....
howdy: shukriya janab :)
shruti: thanks! and yeah, these lines i like a lot as well :)
i can only say, wah!!
wah wah wah !!
Sri sir: thanks :)
AD: :)
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